जीवन में धन, सुख और समृद्धि बढ़ाने के लिए धन के रक्षक धनकुबेर का पूजन

जीवन में धन, सुख और समृद्धि बढ़ाने के लिए धन के रक्षक  धनकुबेर का पूजन
धनकुबेर का पूजन

क्या आप जानते हैं देवताओं के धन की रक्षा करने वाले कुबेर देव राक्षसराज लंकाधिपति रावण के सोतेले भाई हैं। कुबेर देव ने अनजाने में ही एक चमत्कारी उपाय किया और वे बन गए धनकुबेर। कुबेर देव की विधि-विधान से की गई पूजा किसी भी दरिद्र को धनवान बना सकती है।
शास्त्रों के अनुसार कुबेर देव पूर्व जन्म में चोर थे। वे मंदिरों की धन-संपदा भी चोरी किया करते थे। ऐसे ही एक रात वे भगवान शिव के मंदिर में चोरी करने पहुंचे। वहां उस समय रात होने के कारण काफी अंधेरा था। अंधेरे में उन्हें कुछ भी दिखाई नहीं दे रहता था तब उन्होंने चोरी करने के लिए एक दीपक जलाया। दीपक के प्रकाश में उन्हें मंदिर की धन संपत्ति साफ-साफ दिखाई देने लगी।
कुबेर मंदिर का सामान चोरी कर ही रहे थे कि हवा से दीपक बुझ गया। उन्होंने पुन: दीपक जलाया, थोड़ी देर फिर हवा से दीप बुझ गया और कुबेर ने पुन: दीया प्रज्जवलित कर दिया। यह प्रक्रिया कई बार हुई।रात के समय शिवजी के समक्ष दीपक लगाने पर उनकी असीम कृपा प्राप्त हो जाती है। कुबेर यह बात नहीं जानते थे लेकिन रात के समय बार-बार दीपक जलाने से भोलेनाथ कुबेर से अति प्रसन्न हो गए।
कुबेर देव द्वारा अनजाने में की गई इस पूजा के फलस्वरूप महादेव ने उन्हें अगले जन्म में देवताओं का कोषाध्यक्ष नियुक्त कर दिया। तभी से कुबेर देव महादेव के परमभक्त और धनपति हो गए।आमतौर पर कुबेर देव की जो प्रतिमाएं दिखाई देती हैं वह स्थूल शरीर वाली और बेडोल होती हैं कुछ शास्त्रों में कुबेर देव को कुरूप बताया गया है जबकि कुछ ग्रंथों में कुबेर देव का राक्षस माना गया है।
शास्त्रों के अनुसार कुबेर देव रावण के सोतेले भाई हैं और इन्हें भगवान शंकर द्वारा धनपाल होने का वरदान दिया गया है। रावण और कुबेर देव के पिता ऋषि विश्रवा थे। विश्रवा ऋषि की दो पत्नियां थीं इडविडा और कैकसी। कुबेर देव की माता इडविडा है और वे ब्राह्मण कुल की कन्या थीं। रावण की माता कैकसी हैं। कैकसी एक असुर कन्या थीं, इसी वजह से रावण असुर प्रवृत्ति का था।
कुबेर भगवान शिव के परमप्रिय सेवक भी हैं। धन के अधिपति होने के कारण इन्हें मंत्र साधना से प्रसन्न किया जा सकता है। इनकी प्रसन्नता जिस भक्त को मिल जाती है वह धनवान हो जाता है। कुबेर मंत्र का जप दक्षिण की ओर मुख करके करना चाहिए।
कुबेर मंत्र: ऊँ श्रीं, ऊँ ह्रीं श्रीं, ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय: नम:।
विनियोग- अस्य श्री कुबेर मंत्रस्य विश्वामित्र ऋषि:बृहती छन्द: शिवमित्र धनेश्वरो देवता समाभीष्टसिद्धयर्थे जपे विनियोग:।
हवन- तिलों का दशांस हवन करने से प्रयोग सांग होता है। यह प्रयोग शिव मंदिर में करना उत्तम रहता है। यदि यह प्रयोग बिल्वपत्र वृक्ष की जड़ों के समीप बैठकर हो सके तो अधिक उत्तम होगा। यह उपाय सूर्योदय के पूर्व सम्पन्न हो सके तो बहुत लाभकारी होता है।
कुबेर देव को कुछ ग्रंथों में यक्ष भी बताया गया है। यक्ष भी धन के रक्षक ही होते हैं। यक्ष धन की केवल रक्षा करते हैं उसे भोगते नहीं हैं। प्राचीन काल में जो मंदिर बनाए जाते थे उनमें मंदिर के बाहर कुबेर की मूर्तियां भी होती थी क्योंकि कुबेर देव की मंदिर की धन-संपत्ति की रक्षा करते हैं।
कुबेर देव का धन किसी खजाने के रूप में कहीं गड़ा हुआ या स्थिर पड़ा रहता है। कुबेर का निवास वटवृक्ष पर बताया गया है। ऐसे वृक्ष घर-आंगन में नहीं होते, गांव या नगर के केन्द्र में भी नहीं होते हैं, ऐसे पेड़ अधिकतर गांव-नगर के बाहर रहवासी इलाकों से दूर या बियाबान में ही होते हैं। कुबेर देव के धन को जनकल्याणकारी नहीं माना गया है जबकि महालक्ष्मी के धन को दूसरों का कल्याण करने वाला बताया है। इसी वजह से कुबेर देव की अपेक्षा महालक्ष्मी की पूजा अधिक होती है।
शास्त्रों के अनुसार धन प्राप्ति के लिए देवी महालक्ष्मी की आराधना की जाना चाहिए। महादेवी के साथ ही धन के देवता कुबेर देव को पूजने से भी पैसों से जुड़ी समस्याएं दूर हो जाती हैं। इसी वजह से किसी भी देवी-देवता के पूजन के साथ ही इनका भी पूजन करना बहुत लाभदायक होता है।
जीवन में धन, सुख और समृद्धि बढ़ाने के लिए धर्म शास्त्रों के अनुसार कई उपाय बताए गए हैं। जिन्हें अपनाने से निश्चित ही शुभ फलों की प्राप्ति होती हैं। इन्हीं उपायों में से एक उपाय यह है कि घर में कुबेर देव की मूर्ति या फोटो अवश्य रखना चाहिए क्योंकि इन्हें सुख-समृद्धि देने वाले देवता माना जाता है।
कुबेर देव की मूर्ति या फोटो घर में लगाने से इनकी कृपा सदैव सभी सदस्यों पर बनी रहती है और धन से जुड़े कार्यों में सफलता प्राप्त होती है। कुबेर देव का निवास उत्तर दिशा की ओर माना गया है। अत: इनका फोटो भी घर में उत्तर दिशा की ओर ही लगाना श्रेष्ठ रहता है। साथ ही इस बात का ध्यान रखें कि जहां इनका चित्र लगाया जाए वह स्थान पवित्र हो। वहां किसी प्रकार का पुराना सामान या कबाड़ा न हो। उस जगह की साफ-सफाई का विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।

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