लकवा रोग का आसान इलाज
लकवा, जिसे फालिज या पक्षाघात कहते हैं,
ध्यान
देने योग्य एक बात यह है कि सिर्फ आलसी जीवन जीने से ही नहीं, बल्कि
इसके विपरीत अति भागदौड़, क्षमता से ज्यादा परिश्रम या व्यायाम, अति आहार
आदि कारणों से भी लकवा होने की स्थिति बनती है।
ज्यादातर प्रौढ़ आयु के बाद ही होता है, लेकिन इसकी पृष्ठभूमि बहुत पहले से बनने लगती है।
युवावस्था में की गई गलतियाँ-भोग-विलास में अति करना, मादक द्रव्यों का सेवन करना, आलसी रहना आदि कारणों से शरीर का स्नायविक संस्थान धीरे-धीरे कमजोर होता जाता है। जैसे-जैसे आयु बढ़ती जाती है, इस रोग के आक्रमण की आशंका भी बढ़ती जाती है।
युवावस्था में की गई गलतियाँ-भोग-विलास में अति करना, मादक द्रव्यों का सेवन करना, आलसी रहना आदि कारणों से शरीर का स्नायविक संस्थान धीरे-धीरे कमजोर होता जाता है। जैसे-जैसे आयु बढ़ती जाती है, इस रोग के आक्रमण की आशंका भी बढ़ती जाती है।
जब एक या एकाधिक मांसपेशी समूह की मांसपेशियाँ कार्य करने में पूर्णतः असमर्थ हों तो इस स्थिति को पक्षाघात या लकवा
मारना कहते हैं। पक्षाघात से प्रभावी क्षेत्र की संवेदन-शक्ति समाप्त हो
सकती है या उस भाग को चलना-फिरना या घुमाना असम्भव हो जाता है। यदि
दुर्बलता आंशिक है तो उसे आंशिक पक्षाघात कहते हैं।
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कारण
पक्षाघात तब लगता है जब अचानक मस्तिष्क के किसी हिस्से मे रक्त आपूर्ति रुक जाती है या मस्तिष्क की कोई रक्त वाहिका फट जाती है और मस्तिष्क की कोशिकाओं के आस-पास की जगह में खून भर जाता है। जिस तरह किसी व्यक्ति के हृदय
में जब रक्त आपूर्ति का आभाव होता तो कहा जाता है कि उसे दिल का दौरा पड़
गया है उसी तरह जब मस्तिष्क में रक्त प्रवाह कम हो जाता है या मस्तिष्क में
अचानक रक्तस्राव होने लगता है तो कहा जाता है कि आदमी को मस्तिष्क का दौरा पड़ गया है।
शरीर की सभी मांस पेशियों का नियंत्रण केंद्रीय तंत्रिकाकेंद्र (मस्तिष्क और
मेरुरज्जु) की प्रेरक तंत्रिकाओं से, जो पेशियों तक जाकर उनमें प्रविष्ट
होती हैं,से होता है। अत: स्पष्ट है कि मस्तिष्क से पेशी तक के नियंत्रणकारी
अक्ष के किसी भाग में, या पेशी में हो, रोग हो जाने से पक्षाघात हो सकता
है। सामान्य रूप में चोट, अबुद की दाब और नियंत्रणकारी अक्ष के किसी भाग के
अपकर्ष आदि, किसी भी कारण से उत्पन्न प्रदाह का परिणाम आंशिक या पूर्ण
पक्षाघात होता है।
लकवा-पक्षाघात-फालिज के प्रकार
अर्दित - सिर्फ चेहरे पर लकवे का असर होने को अर्दित (फेशियल पेरेलिसिस) कहते हैं। अर्थात सिर, नाक, होठ, ढोड़ी, माथा तथा नेत्र सन्धियों में कुपित वायु स्थिर होकर मुख को पीड़ित कर अर्दित रोग पैदा करती है।
एकांगघात - इसे एकांगवात भी कहते हैं। इस रोग में मस्तिष्क के बाह्यभाग में विकृति होने से एक हाथ या एक पैर कड़ा हो जाता है और उसमें लकवा हो जाता है। यह विकृति सुषुम्ना नाड़ी में भी हो सकती है। इस रोग को एकांगघात (मोनोप्लेजिया) कहते हैं।
सर्वांगघात - इसे सर्वांगवात रोग भी कहते हैं। इस रोग में लकवे का असर शरीर के दोनों भागों पर यानी दोनों हाथ व पैरों, चेहरे और पूरे शरीर पर होता है, इसलिए इसे सर्वांगघात (डायप्लेजिया) कहते हैं।
अधरांगघात - इस रोग में कमर से नीचे का भाग यानी दोनों पैर लकवाग्रस्त हो जाते हैं। यह रोग सुषुम्ना नाड़ी में विकृति आ जाने से होता है। यदि यह विकृति सुषुम्ना के ग्रीवा खंड में होती है, तो दोनों हाथों को भी लकवा हो सकता है। जब लकवा 'अपर मोटर न्यूरॉन' प्रकार का होता है, तब शरीर के दोनों भाग में लकवा होता है।
बाल पक्षाघात - बच्चे को होने वाला पक्षाघात एक तीव्र संक्रामक रोग है। जब एक प्रकार का विशेष कृमि सुषुम्ना नाड़ी में प्रविष्ट होकर वहाँ खाने लगता है, तब सूक्ष्म नाड़ियाँ और माँसपेशियां आघात पाती हैं, जिसके कारण उनके अधीनस्थ शाखा क्रियाहीन हो जाती है। इस रोग का आक्रमण अचानक होता है और प्रायः 6-7 माह की आयु से ले कर 3-4 वर्ष की आयु के बीच बच्चों को होता है।
अगर लकवा अगर रोगी ह्रीष्ट-पुष्ट है तो उसे 5-6 दिन का उपवास कराना
चाहिये। कमजोमिलेगी।रोगी
को सीलन रहित और तेज धूप रहित कमरे मे आरामदायक बिस्तर पर लिटाना चाहिये।
र शरीर वाले के लिये 2-3 दिन के उपवास करना उत्तम है। उपवास की
अवधि में रोगी को सिर्फ़ पानी में शहद मिलाकर देना चाहिये। एक गिलास जल में
एक चम्मच शहद मिलाकर देना चाहिये। इस प्रक्रिया से रोगी के शरीर से
विजातीय पदार्थों का निष्काशन होगा, और शरीर के अन्गों पर भोजन का भार नहीं
पडने से नर्वस सिस्टम(नाडी मंडल) की ताकत पुन: लौटने में मदद
उपचार
उपवास के बाद रोगी को कबूतर का सूप देना चाहिये। कबूतर न मिले तो चिकन का सूप दे सकते हैं। शाकाहारी रोगी मूंग की दाल का पानी पियें। रोगी को कब्ज हो तो एनीमा दें।
१० ग्राम सूखी अदरक और १० ग्राम बच पीसलें इसे ६० ग्राम शहद मिलावें। यह मिश्रण रोगी को ६ ग्राम रोज देते रहें।
लहसुन की ४ कली पीसकर दो चम्मच शहद में मिलाकर रोगी को चटा दें।
लकवा रोगी का ब्लड प्रेशर नियमित जांचते रहें। अगर रोगी के खून में कोलेस्ट्रोल का लेविल ज्यादा हो तो ईलाज करना वाहिये।
रोगी तमाम नशीली चीजों से परहेज करे। भोजन में तेल,घी,मांस,मछली का उपयोग न करे।
बरसात में निकलने वाला लाल रंग का कीडा वीरबहूटी लकवा रोग में
बेहद फ़ायदेमंद है। बीरबहूटी एकत्र करलें। छाया में सूखा लें। सरसों के तेल
पकावें।इस तेल से लकवा रोगी की मालिश करें। कुछ ही हफ़्तों में रोगी ठीक
हो जायेगा। इस तेल को तैयार करने मे निरगुन्डी की जड भी कूटकर डाल दी जावे
तो दवा और शक्तिशाली बनेगी।
एक बीरबहूटी केले में मिलाकर रोजाना देने से भी लकवा में अत्यन्त लाभ होता है।
सफ़ेद कनेर की जड की छाल और काला धतूरा के पत्ते बराबर वजन में
लेकर सरसों के तेल में पकावें। यह तेल लकवाग्रस्त अंगों पर मालिश करें।
अवश्य लाभ होगा।
लहसुन की ५ कली दूध में उबालकर लकवा रोगी को नित्य देते रहें। इससे ब्लडप्रेशर ठीक रहेगा और खून में थक्का भी नहीं जमेगा।
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