अपस्मार (मिर्गी) (एपिलेप्सी) रोग की चिकित्सा-
मिर्गी एक नाडी संबंधित रोग है जिसमें मस्तिष्क की विद्युतीय प्रक्रिया में व्यवधान पडने से शरीर के अंगों में आक्छेप आने लगते हैं। दौरा पडने के दौरान ज्यादातर रोगी बेहोंश हो कर गिर जाते हैं और आंखों की पुतलियां उलट जाती हैं। रोगी चेतना विहीन हो जाता है और शरीर के अंगों में झटके आने शुरू हो जाते हैं। मुंह में झाग आना मिर्गी का प्रमुख लक्छण है।
आधुनिक चिकित्सा विग्यान में मिर्गी की लाक्छणिक चिकित्सा करने का विधान है और जीवन पर्यंत दवा-गोली पर निर्भर रहना पडता है। लेकिन रोगी की जीवन शैली में बदलाव करने से इस रोग पर काफ़ी हद तक काबू पाया जा सकता है। कुछ निर्देश और हिदायतों का पालन करना मिर्गी रोगी और उसके परिवार जनों के लिये परम आवश्यक है। शांत और आराम दायक वातावरण में रहते हुए नियंत्रित भोजन विधान अपनाना बहुत जरूरी है। भोजन भर पेट लेने से बचना चाहिये। थोडा भोजन कई बार ले सकते हैं। रोगी को सप्ताह मे एक दिन सिर्फ़ फ़लों का आहार लेना उत्तम है। अपस्मार - मिर्गी रोग की चिकित्साअपस्मार मिर्गी के रोगी को सफर से बचना जरूरी है ।
अनिवार्या रूप मैं श्री तुलसी की 1-2 बूँद हर रोज पानी मैं डालकर रोगी को दोनो टाइम दे नीमिन लिखित कोई एक दवा का नियमित उपचार शुरू करे
1- 100 ग्राम दूध में इतना ही पानी मिलाकर उबालें दूध में लहसुन की ४ कुली चाकू से बारीक काटक्रर डालें ।यह खीर रात को सोते वक्त खाना कुछ ही रोज में फ़ायदा नजर आने लगेगा।
2-- गाय के दूध से बनाया हुआ मक्खन मिर्गी में फ़ायदा पहुंचाने वाला है। 10 - 15 ग्राम नित्य खाएं।1- नींबू के रस में अरीठे को घिसकर उसका नस्य लेने से अथवा भांगरे के रस में समान मात्रा में बकरी का दूध मिलाकर उसकी बूँदें नाक में रोज डालने से मिर्गी के रोग में लाभ होता है।
पागलपनइस रोग के मरीज को सूत की खाट पर बाँधकर नीचे से कड़वे सहजने की पत्तियों का धुआँ 15 मिनट तक दें। मरीज को ऊपर से कम्बल ढाँक दें जिससे उसकी नाक, आँख एवं कान में धुआँ प्रवेश करेगा। इस प्रयोग से चार-पाँच दिन में ही मरीज ठीक हो सकता है।
3- अंगूर का रस मिर्गी रोगी के लिये अत्यंत उपादेय उपचार माना गया है। आधा किलो अंगूर का रस निकालकर प्रात:काल खाली पेट लेना चाहिये। यह उपचार करीब ६ माह करने से आश्चर्यकारी सुखद परिणाम मिलते हैं।
4- मानसिक तनाव और शारिरिक अति श्रम रोगी के लिये नुकसान देह है। इनसे बचना जरूरी है।
5- मिर्गी रोगी को २५० ग्राम बकरी के दूध में ५० ग्राम मेंहदे के पत्तों का रस मिलाकर नित्य प्रात: दो सप्ताह तक पीने से दौरे बंद हो जाते हैं। जरूर आलमाएं।
6- रोजाना तुलसी के २० पत्ते चबाकर खाने से रोग की गंभीरता में गिरावट देखी जाती है।
7-पेठा मिर्गी की सर्वश्रेष्ठ घरेलू चिकित्सा में से एक है। इसमें पाये जाने वाले पौषक तत्वों से मस्तिष्क के नाडी-रसायन संतुलित हो जाते हैं जिससे मिर्गी रोग की गंभीरता में गिरावट आ जाती है। पेठे की सब्जी बनाई जाती है लेकिन इसका जूस नियमित पीने से ज्यादा लाभ मिलता है। स्वाद सुधारने के लिये रस में शकर और मुलहटी का पावडर भी मिलाया जा सकता है।
8-लहसुन की थोड़ी कलियों को दूध में भिगोकर प्रतिदिन सेवन करने से थोड़े ही दिनों में इस रोग से छुटकारा मिल जाता है।
9-बेहोशी के दौरे आने पर लहसुन को पीसकर रोगी को सुँघाने से तथा उसका रस रोगी की नाक में डालने से बेहोशी दूर होती है।